Saturday, May 16, 2009

अरमान

फ़िर एक दिन इन आसुओं की सौगात आई थी
इस महकते आँगन में मेरे अरमानो की लाश आई थी
था इंतज़ार उस साथी का जिसने अमृत पास रखी थी
पर मुझे क्या पता वो भी आसुओं की बारिस में लहू -लुहान थी ।

साँसे टूट रही थी सपने यूँ ही बिखर रहे थे
इंतज़ार में ये आँखें आसुओं की बारिस कर रहे थे
आँगन में मेरे सिर्फ़ खून ही खून तैर रहे थे
फ़िर भी राह में उसकी मेरे अरमान जाग रहे थे

थम गई बारिस बह गए मेरे सारे सपने
आँगन में उसी लगे फ़िर से फूल महकने
पर ना मैं था ना थे मेरे कोई अरमान
इस पेड से फूल न तोड़ना यंहा कब्र में सो रहा है एक इंसान

1 comment:

  1. apki jindagi ki kahani shbado me byaan kar dali hai apne...sshayad aisa mujeh laga ya ho ye hakeekat
    bahut asardar

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