एक रात को मौसम भी डरा रहा था ,
कहीं दूर कोई ज़िन्दगी से लड़ रहा था,
मासूमियत थक कर आँखों में सो रही थी,
और इस जालिम ज़माने में कोई दीवाली मना रहा था !
भावनाएं तो अनमोल थी,
पर कोई कौड़ियों का भाव लूटा रहा था,
सासों कि डोर टूटने को थी,
जिंदगी कि राह में कोई सपने सजा रहा था !
रात तो आकर चली गयी,
मौसम भी सुहावना होने लगा,
सारे जहाँ में जश्न का माहौल था,
पर कहीं किसी कोने में दफ़न एक मासूम था !!!!!!!
Wednesday, April 21, 2010
Monday, November 16, 2009
इंसानों की बस्ती
कौन चाहता है यहाँ
कौन रुकता है यहाँ
कौन दीखता है यहाँ
आते और जाते लोग यहाँ
ऐसे दीवानों की बस्ती और कहाँ !!!!!!!!
कुछ पाने की होड़ में
सब रिस्तों की जोड़ में
मन की जोड़-तोड़ में
मिल जाते हैं लोग यहाँ
ऐसे अरमानों की बस्ती और कहाँ !!!!!!!
ख़ुद को आगे बढ़ाने के लिए
अपने किया गुनाहों को छिपाने के लिए
हर किसी को छलने के लिए
रहते हैं तैयार लोग यहाँ
ऐसे बेईमानों की बस्ती और कहाँ !!!!!!!
चुप है जुबान बुरे से डरकर
झुका है सर सच्चाई को
शर्मसार है इंसानियत अपना वजूद जानकर
रहते हैं ऐसे लोग यहाँ
ऐसे इंसानों की बस्ती और कहाँ !!!!!!!!!!
कौन दीखता है यहाँ
आते और जाते लोग यहाँ
ऐसे दीवानों की बस्ती और कहाँ !!!!!!!!
कुछ पाने की होड़ में
सब रिस्तों की जोड़ में
मन की जोड़-तोड़ में
मिल जाते हैं लोग यहाँ
ऐसे अरमानों की बस्ती और कहाँ !!!!!!!
ख़ुद को आगे बढ़ाने के लिए
अपने किया गुनाहों को छिपाने के लिए
हर किसी को छलने के लिए
रहते हैं तैयार लोग यहाँ
ऐसे बेईमानों की बस्ती और कहाँ !!!!!!!
चुप है जुबान बुरे से डरकर
झुका है सर सच्चाई को
शर्मसार है इंसानियत अपना वजूद जानकर
रहते हैं ऐसे लोग यहाँ
ऐसे इंसानों की बस्ती और कहाँ !!!!!!!!!!
Tuesday, November 10, 2009
बीते पल
कुछ तो बात थी उन राहों की
कुछ तो साथ थी उन बाँहों की
कुछ तो महक थी उन सासों की
आज भी चले आते हैं याद उन दिनों की
किसी के चाहत में ख़ुद को भुलाना
कुछ उसकी सुनना, कुछ अपनी सुनाना
कैसे भुला दें हम वो बिता हुआ जमाना
बहुत मुश्किल है उन यादों को मिटाना
एक चाहत थी उन रातों में
एक जादू था उन बातो में
एक सपना था उन आखों में
संजोय रखें हैं उन पलों को दिल में
आज के साथ से , रोज की बात से
कुछ रुके हुए पल से, ख्वाबों की दुनिया से
एक कसक सी होती है दिल में उन
बीते पलों की यादों से
Saturday, May 16, 2009
अरमान
फ़िर एक दिन इन आसुओं की सौगात आई थी
इस महकते आँगन में मेरे अरमानो की लाश आई थी
था इंतज़ार उस साथी का जिसने अमृत पास रखी थी
पर मुझे क्या पता वो भी आसुओं की बारिस में लहू -लुहान थी ।
साँसे टूट रही थी सपने यूँ ही बिखर रहे थे
इंतज़ार में ये आँखें आसुओं की बारिस कर रहे थे
आँगन में मेरे सिर्फ़ खून ही खून तैर रहे थे
फ़िर भी राह में उसकी मेरे अरमान जाग रहे थे
थम गई बारिस बह गए मेरे सारे सपने
आँगन में उसी लगे फ़िर से फूल महकने
पर ना मैं था ना थे मेरे कोई अरमान
इस पेड से फूल न तोड़ना यंहा कब्र में सो रहा है एक इंसान
इस महकते आँगन में मेरे अरमानो की लाश आई थी
था इंतज़ार उस साथी का जिसने अमृत पास रखी थी
पर मुझे क्या पता वो भी आसुओं की बारिस में लहू -लुहान थी ।
साँसे टूट रही थी सपने यूँ ही बिखर रहे थे
इंतज़ार में ये आँखें आसुओं की बारिस कर रहे थे
आँगन में मेरे सिर्फ़ खून ही खून तैर रहे थे
फ़िर भी राह में उसकी मेरे अरमान जाग रहे थे
थम गई बारिस बह गए मेरे सारे सपने
आँगन में उसी लगे फ़िर से फूल महकने
पर ना मैं था ना थे मेरे कोई अरमान
इस पेड से फूल न तोड़ना यंहा कब्र में सो रहा है एक इंसान
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